देश की विरासत को संजोने और जन-जन तक पहुंचाने का मिशन प्रधानमंत्री ने बनाया
आजादी की लड़ाई को आवाज देने वाले वंदे मातरम का विरोध करना सबसे बड़ा अपराध
शिमला: देश की आजादी की लड़ाई को आवाज देने वाले राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के सृजन के 150 वर्ष पूरे होने पर आयोजित उत्सव में बोलते हुए पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि वंदे मातरम् भारत के स्वतंत्रता संग्राम का वह अमर गीत है जिसने करोड़ों भारतीयों में अद्भुत देशभक्ति, साहस और आत्मबल का संचार किया। इसकी इतिहास, रचना-पृष्ठभूमि और स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। 1875 महान लेखक और आज़ादी के मतवाले बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘वंदे मातरम्’ की रचना उपन्यास आनंदमठ के लिए की। केंद्र में मोदी जी की सरकार आने के बात जब वंदे मातरम गीत को ज्यादा से ज्यादा जगहों राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रमों और उत्सवों में गाने का नियम बना तो इस पर कुछ पार्टियों ने एतराज जताया। कांग्रेस सरकार जिन भी राज्यों में थी वहां पर इसका विरोध किया गया। देश की आजादी की लड़ाई में जीत और जोश का उद्गार बनने वाला इस गीत का विरोध करना तो दूर विरोध करने की बात सोचना भी किसी अपराध से कम नहीं है। लेकिन वंदे मातरम् के विरोध को स्वर देने वालों में कांग्रेस भी शामिल थी। 2019 में जब कुछ समय के लिए मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई तो सचिवालय में वंदे मातरम गाने पर रोक ही लगा दी गई थी। अन्य प्रदेशों में भी किसी न किसी तरह वंदे मातरम का विरोध कांग्रेस और उसके सहयोगी करते रहते हैं। जबकि संविधान के अनुच्छेद 51(ए) में ‘संविधान का पालन, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान का आदर व राष्ट्रीय आंदोलन के प्रेरक उच्च आदर्शों का पालन मूल कर्तव्य हैं।
जयराम ठाकुर ने कहा कि इस गीत की महिमा और और आजादी की लड़ाई में योगदान को देखते हुए 01 अक्टूबर 2025 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर देश इसको उत्सव को मनाने का निर्णय किया गया। यह गीत माँ-भारती को देवी दुर्गा के रूप में चित्रित करता है—जो शक्ति, साहस और सौंदर्य का प्रतीक है। यह गीत केवल शब्दों का संयोजन नहीं था—यह माँ-भारती की पूजा, उसकी पवित्रता और उसकी शक्ति का दिव्य स्तोत्र था। महान क्रांतिकारी अरविंद घोष, बिपिन चंद्र पाल, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अनगिनत आज़ादी के दीवानों के लिए “वंदे मातरम्” केवल एक नारा नहीं बल्कि मातृभूमि के लिए मर-मिटने का संकल्प था। अंग्रेजों ने इसे कई बार प्रतिबंधित किया, क्योंकि वे जानते थे कि यह गीत सुनते ही जनता के हृदय में स्वतंत्रता की आग भड़क उठती है। जिसे रोकना उनके लिए मुश्किल होता है। हमारी संविधान सभा ने इसे 1950 में राष्ट्रीय गीत का सम्मान दिया—क्योंकि “वंदे मातरम्” केवल इतिहास नहीं, हमारी राष्ट्रीय पहचान का आधार है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि आज जब हम इस गीत को सुनते हैं, तो हमें उसकी पंक्तियों में भारत की धरती की सुगंध, नदियों की पवित्रता और किसानों के पसीने की चमक दिखाई देती है। यह गीत हमें याद दिलाता है कि हमारा राष्ट्र केवल भूगोल नहीं—बल्कि एक भाव है, एक संस्कृति है, एक आस्था है। देश के अंदर स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले इस गीत के 150 वर्ष पूरे होने पर इसे एक उत्सव के रूप में मनाने के पीछे का लक्ष्य “वंदे मातरम्” की उस आत्मा को अपने भीतर जीवित रखना है। जिसने गुलामी की घनी रात में स्वतंत्रता की सुबह जगाई थी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत के साथ-साथ देश के इतिहास स्वतंत्रता संघर्ष और उसमें योगदान देने वाले हर व्यक्ति या विचार को संजोने और जन-जन तक उसे पहुंचने के मिशन पर काम कर रहे हैं। हमारे इतिहास में ऐसे अनेक नायक है जिनके योगदान को या तो भुला दिया गया या कमतर दिखाया गया। राजमाता अहिल्याबाई होलकर के सामाजिक सुधार हो, या भगवान बिरसा मुंडा जैसे क्रांतिकारियों के योगदान को याद करना हो या आधुनिक भारत के एकीकरण के सबसे बड़े नायक सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची स्टैचू ऑफ यूनिटी बनाना। या फिर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर से जुड़े स्थलों पंच तीर्थ स्मारक बना बनाना या जननायक कर्पूरी ठाकुर जैसे सामाजिक नायकों को भारत रत्न देना। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री स्पष्ट मत है कि राष्ट्र का नायक राष्ट्र की धरोहर होते हैं उनके योगदान और व्यक्तित्व के बारे आने वाली पीढियां को जानने समझने का पूरा हक है।
क्या केंद्र एक्सटर्नल ऐडेड प्रोजेक्ट में नहीं देता अपना हिस्सा
पत्रकारों के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कितने बड़े अर्थशास्त्री हैं वह पूरा प्रदेश और देश देख रहा है। हर छोटी से बड़ी संस्था सरकार की नाकामी, दूरगामी सोच से रहित योजनाओं को चिन्हित कर रही है। लोगों को ना समय पर वेतन मिल रहा है और नहीं पेंशन। मेडिकल बिल समेत अन्य सुविधाओं की बात तो बहुत दूर की है। हमने भी अपनी सरकार में इससे बुरा दौर देखा है। कोविड के समय पूरी दुनिया के आर्थिक हालात कैसे थे, तभी हमने विकास के काम रोक ना सुविधाओं में कमी की और ना ही किसी कर्मचारी का 1 दिन का वेतन काटा। जयराम ठाकुर ने कहा कि वह हमें एक्सटर्नल ऐडेड प्रोजेक्ट की प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं। उन्हें यह बताना चाहिए कि ऐसे प्रोजेक्ट में केंद्र की हिस्सेदारी कितनी होती है? बिना केंद्र के सहयोग कैसे प्रोजेक्ट मिलते हैं? क्या नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद हिमाचल प्रदेश को योजनाओं में केंद्र की हिस्सेदारी बढ़ाकर 90 प्रतिशत नहीं की थी? सभी बातों की सिर्फ एक बात यह है कि यदि केंद्र सरकार मदद कर रही है तो उसका आभार जताना एक सामान्य शिष्टाचार है, जो सरकार को करना चाहिए।








