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आचार्य ओम प्रकाश मिश्र वरिष्ठ अर्चक, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
: भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। धार्मिक दृष्टि से सत्य ही शिव हैं और शिव ही सुंदर है। तभी तो भोलेनाथ आशुतोष को सत्यम शिवम सुंदर कहा जाता है।
वे सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं। सम्पूर्ण विश्व शिवकृपा से ही पाश मुक्त हो सकता है। भगवान श्री शिव की उपासना के बिना साधक अभीष्ट लाभ नहीं प्राप्त कर सकता। शिवोपासना के द्वारा ही परम तत्व शिवत्व की प्राप्ति संभव है।
शिव जी सभी को सौभाग्य प्रदान करने वाले हैं भगवान शिव कार्य और करण से परे हैं। ये निर्गुंण, निराकार,निर्बाध, निर्विकल्प निरीह, निरंजन, निष्काम, निराधार तथा सदा नित्यमुक्त हैं।
जब से सृष्टि की रचना हुई हैं तब से भगवान शिव की आराधना व उनकी महिमा की गाथाओं से भण्डार भरे पड़े हैं। स्वयं भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण ने भी अपने कार्यों की बाधारहित सिद्धि के लिये उनकी साधना की और शिव जी के शरणागत हुए। भगवान श्रीराम ने लंका विजय के पूर्व भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव के भक्तों व उनकी आराधना की कहानियां हमारे पुराणों व धर्मग्रथों में भरी पड़ी है।
और शिव जी को प्रसन्न करने का ही महापर्व है शिवरात्रि।
हिन्दू धर्मशास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगत में रहते हुए मनुष्य का कल्याण करने वाला व्रत है महाशिवरात्रि।
महादेव जी थोड़ा सा जल और बेलपत्र पाकर भी संतुष्ट हो जाते हैं। वे सभी के कल्याण स्वरूप हैं।

हिन्दू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार शिव एक शक्ति है, एक रहस्यमय ऊर्जा, जिससे संपूर्ण जगत चलायमान है। प्राचीन काल के संत मुनि-ऋषियों की मानें तो उन्होंने इस अज्ञात शक्ति को शिव कहा है। और वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो महाशिवरात्रि की रात्रि बहुत खास होती है।
मान्यतानुसार इस रात्रि ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार विद्यमान होता है कि हर मनुष्य के अंदर की ऊर्जा, प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है। अर्थात् कहने का तात्पर्य यह हैं कि प्रकृति स्वयं ही मनुष्य को आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद कर रही होती है। ऋषि व्यास ने उल्लेख किया है कि भगवान शिव प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन जैसे उप-परमाणु कण से भी छोटे हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि भगवान शिव किसी भी महानतम (पूरे ब्रह्मांड) से भी बड़े हैं। वे सभी जीवित चीजों में जीवन शक्ति का कारण हैं। सब कुछ, चाहे जीवित हो या निर्जीव, शिव से उत्पन्न होता है।
हमारे वेदों और उपनिषदों में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के लिए जो वैज्ञानिक व्याख्या दी गई है, वह है सत्व, रजस और तमस्।
अत: महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का पूजन-आराधना करने के लिए व्यक्ति को एकदम सीधे बैठना पड़ता है, जिससे रीड की हड्डी मजबूत होती है तथा वह व्यक्ति जो सोचता हैं वो पा सकता है, यानी इस समयावधि में आप सुपर नेचर पावर का अहसास महसूस करते हैं।
इससे उसे शारीरिक ही नहीं, मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक शक्ति भी प्राप्त होती है। भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय है। यह मंत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस मंत्र का संबंध पंच महाभूतों भूमि, गगन, वायु अग्नि एवं नीर से माना जाता है। इस मंत्र का निरंतर जाप करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। इससे मनुष्य का आत्मबल बढ़ा हुआ है।
शिव ही वह ऊर्जा है, जो हर जीव के अंदर मौजूद है और इसी ऊर्जा के कारण ही हम सभी अपनी दैनिक गतिविधियां कर पाते हैं।निष्ठा तथा सकाम भाव से सभी व्यक्तियों के लिए यह महान व्रत परम हितकारी माना गया है।