पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त किया जाता श्राद्ध
शिमला:
पितृ पक्ष श्राद्ध आज से शुरू हो गए हैं जो 6 अक्तूबर तक चलेंगे। आज 20 सितम्बर सोमवार को पूर्णिमा श्राद्ध होगा। इसी तरह 21 सितम्बर मंगलवार को प्रतिपदा श्राद्ध, 22 सितम्बर को द्वितीया श्राद्ध, 23 सितम्बर को तृतीय श्राद्ध, 24 सितम्बर को चतुर्थी श्राद्ध, 25 सितम्बर को पंचमी श्राद्ध, 27 सितम्बर को षष्ठमी श्राद्ध, 28 सितम्बर को सत्पमी श्राद्ध, 29 सितम्बर को अष्टमी श्राद्ध, 30 सितम्बर को नवमी श्राद्ध, 1 अक्तूबर को दशमी श्राद्ध, 2 अक्तूबर को एकादशी श्राद्ध, 3 अक्तूबर को द्वादशी, सन्यासियों का श्राद्ध, मघा श्राद्ध, 4 अक्तूबर को त्रयोदशी श्राद्ध, 5 अक्तूबर को चतुर्दशी श्राद्ध तथा 6 अक्तूबर को अंतिम अमावस्या श्राद्ध होगा।
आचार्य चिरंजी लाल के अनुसार 26 सितम्बर को श्राद्ध नहीं होगा, क्यूंकि षष्ठी तिथि का श्राद्ध 27 सितम्बर को निर्णीत होने तथा पंचमी का श्राद्ध 25 सितम्बर को अपराह्ण। व्यापिनी पंचमी तिथि होने के कारण 26 सितम्बर को कोई भी तिथि श्राद्ध नहीं होगा।
आचार्य चिरंजी लाल ने कहा कि पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है। हिंदू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य का प्रवेश कन्या राशि में होता है तो उसी दौरान पितृ पक्ष मनाया जाता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान को सर्वोत्तम माना गया है। महर्षि सुमंतु ने श्राद्ध से होने वाले लाभ के बारे में बताया है कि ‘संसार में श्राद्ध से बढ़कर कोई दूसरा कल्याणप्रद मार्ग नहीं है। अतः बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।
श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज कराया जाता है। इसमें चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित किया जाता है। जल में काले तिल, जौ, कुशा यानि हरी घास और सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है। पिण्ड चावल और जौ के आटे, काले तिल तथा घी से निर्मित गोल आकार के होते हैं जो अन्त्येष्टि में तथा श्राद्ध में पितरों को अर्पित किये जाते हैं। पूर्वज पूजा की प्रथा विश्व के अन्य देशों की भाँति बहुत प्राचीन है। यह प्रथा यहाँ वैदिक काल से प्रचलित रही है।
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पंद्रह दिन पितृपक्ष (पितृ = पिता) के नाम से विख्यात है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं। हालाँकि श्राद्ध 15 दिन के होते हैं लेकिन कुछ लोगों कि मृत्यु पूर्णिमा को हुई होती है, शास्त्रों में इन लोगों के लिए श्राद्ध पूर्णिमा के दिन करवाया जाता है
उन्होंने बताया कि श्राद्ध’ का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए पदार्थ-दान (हविष्यान्न, तिल, कुश, जल के दान) का नाम ही श्राद्ध है। श्राद्ध कर्म पितृऋण चुकाने का सरल व सहज मार्ग है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितरगण वर्षभर प्रसन्न रहते हैं। श्राद्ध की आवश्यकता और लाभ पर अनेक ऋषि-महर्षियों के वचन ग्रंथों में मिलते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार ‘पितृ पूजन (श्राद्ध कर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।
आचार्य चिरञ्जी लाल शर्मा, गुरू कृपा ज्योतिष केंद्र, दी माल शिमला-1 कुंडली फलादेश, वास्तु, कर्मकाण्ड एवं जेम्ज़ स्पेशलिस्ट । अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क करें । मोबाइल :- 094184-95265,वाट्सएप न.7018475237