शिमला का कालीबाड़ी मन्दिर ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों में शामिल
पयर्टन नगरी शिमला का कालीबाड़ी मन्दिर ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों में शामिल है। ये समुद्र तल से 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यह स्कैंडल पॉइंट से कुछ ही दूरी पर है मान्यताओं के अनुसार यह वह मंदिर है, जिसमें पाषण पत्थर की मूर्ति ‘‘श्यामला’’ स्थापित है। कहा जाता है कि इसी मूर्ति के नाम से ही शिमला का नामकरण हुआ है। मन्दिर पत्थर और सीमेन्ट से निर्मित है। श्रद्धालु मन्दिर के गर्भगृह में स्थापित मां दुर्गा की अष्टभुजा वाली मूर्ति के दर्शन करते हैं। इसी मूर्ति के दोनों ओर पाषाण श्यामला और चण्डिका की पत्थर की मूर्तियां रखी हैं। ये मूर्तियां सिन्दूर से लाल पीले रंग की हो गई हैं जिनका ऊपरी भाग चांदी से मढ़ा गया है। इनके समक्ष एक शिवलिग हैं। पश्चिमी दिशा की ओर नया शिव मन्दिर स्थापित किया गया है जिससे इस परिसर की शोभा और भी बढ़ जाती है। मन्दिर के समीप ही यात्रियों के लिए ठहरने की व्यवस्था की गई है। मन्दिर के संबंध में कई कहानियां प्रचलित हैं। इनमें से एक यह भी है 1823 ई. जिस जगह शिमला शहर बसा है और यह मन्दिर स्थित है उसे पूर्व में ‘‘श्यामला’’ गांव से जाना जाता था। गोरखा युद्ध के बाद जब अंग्रेजों द्वारा यहां अपना स्थायी कैम्प यहां स्थापित किया। कहा जाता है कि इस सर्वेक्षण टीम का नेतृत्व एक अंग्रेजी चीफ कर रहा था व इस टीम में बंगाली व्यक्ति भी शामिल थे। इस दौरान जब उन्होंने इस पहाड़ी पर भ्रमण किया तो एक पहाड़ी पर एक महात्मा को धुनी जलाए हुए देखा। जब वे इस महात्मा के पास पहुंचे तो उनहोंने देखा कि धुनी के साथ ही एक पत्थर की मूर्ति भी पड़ी है जिसकी वह महात्मा नियमित पूजा किया करता था। वे लोग दिनभर काम करने के बाद शाम को साधु के पास बैठने आया करते थे। एक दिन वह बीमार हो गया और कुछ दिनों बाद उसका निधन हो गया। जिसके पश्चात साधू के पास आने वाले उक्त लोगों ने साधु की जगह स्वयं उसकी उपासना प्रारम्भ कर दी। इसी दौरान एक अन्य पहाड़ी पर भी एक साधु उसी तरह की मूर्ति की पूजा किया करता था।
कहा जाता हैं कि यही मूर्ति उस दौरान श्यामला काली के नाम से जानी जाती थी जिससे इस गांव का नाम श्यामला था। किवदंतियों के अनुसार एक दिन एक अंग्रेज अधिकारी को यह स्थान पसन्द आ गया और उसने यहां एक भवन बनाने का निर्णय ले लिया। उसने साधु को वहां से हट जाने के लिए कहा लेकिन साधु ने मना कर दिया इस पर दो दिन बाद उसने साधु को कैद में डालकर उस प्रतिमा को यहां से उठवा कर नाले में फैंक दिया। अब अंग्रेज अधिकारी को उस दिन के बाद नियमित रात्रि भयंकर स्वप्न मिलने लगे। उसने यह बात अपने सर्वेक्षण दल से कही। उन्होंने यह अनुमान लगाया कि शायद यह सभी उस साधु के प्रकोप से न हो रहा हो। सर्वेक्षण चीफ ने जब अपना दल उस मूर्ति की तलाश में भेजा तो स्नोडन के नाले में उस मूर्ति के साथ साथ ड्यूटी चीफ की लाश भी पड़ी मिली जिसने उसे फैंका था। सभी इस चमत्कार से भयभीत हो गए और उन्होंने श्रद्धापूर्वक उस मूर्ति को उठाया और उसी स्थान पर रखा गया था वह वहां से लापता थी। इस तरह सर्वेक्षण टीम ने इन दोनों मूर्तियों को साथ रखकर उनकी पूजा भी की और वहां एक छोटा-सा मन्दिर भी बनाया। इस तरह धीरे-धीरे इसी मूर्ति के नाम पर ‘‘श्यामला’’ से यह ‘‘शिमला’’ बन गया।
उसके पश्चात तत्कालीन रियासतों के राजाओं ने भी यहां की इस घटना को जब सुना तो वे भी यहां आने लगे और स्वेच्छा से मन्दिर के लिए धन एकत्रित होना शुरू हो गया। पहले यह मन्दिर लकड़ी का बनाया गया और बाद में इसे पक्का बना दिया गया। 1900 में जयपुर के बंगाली भाइयों ने यहां जयपुर से बड़ी मूर्ति लाकर स्थापित कर दी। इस मन्दिर का नामकरण बंगाली भाइयों ने ही कालीबाड़ी किया है। बंगाली में बाड़ी शब्द घर के लिए प्रयुक्त किया जाता है इसलिए उन्होंने काली मां का निवास स्थल के लिए कालीबाड़ी नामकरण कर लिया। वैसे तो हमेशा ही यहां लोगों की भीड़ रहती है परन्तु मंगलवार तथा रविवार को असंख्य लोग माता के मन्दिर में आते हैं। नवरात्रों में यहां मेलों का आयोजन किया जाता है जिसमें बंगाली परम्पराएं रहती हैं आज यह मन्दिर देश-विदेश के सैलानियों के लिए भी श्रद्धास्थल है।
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