शिमला : हिमाचल प्रदेश के आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारियों (AMOs) ने आयुर्वेद को नया आयाम देते हुए राष्ट्रीय स्तर पर विभाग को प्रतिष्ठित सम्मान दिलाया है। “देश का प्रकृति परीक्षण” अभियान के तहत उन्होंने निर्धारित 5 लाख के लक्ष्य को पार करते हुए 7.2 लाख से अधिक लोगों का प्रकृति परीक्षण किया, जिससे राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर ‘लेटर ऑफ अप्रिसिएशन’ और ‘ट्रॉफी’ से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय समारोह में शिमला जोन के उप निदेशक डॉ. राजेश कुमार शर्मा द्वारा प्राप्त किया गया। हिमाचल प्रदेश के आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारियों ने अपनी नियमित जिम्मेदारियों के साथ-साथ इस महत्त्वपूर्ण अभियान को सफलतापूर्वक संचालित किया, जिससे न केवल राज्य बल्कि पूरे देश में आयुर्वेद की वैज्ञानिकता एवं प्रभावशीलता को नई पहचान मिली।
प्रकृति परीक्षण आयुर्वेद की एक मौलिक निदान पद्धति है, जिसके माध्यम से व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति (वात, पित्त, कफ) का निर्धारण कर उसके अनुरूप आहार, दिनचर्या और औषधि का चयन किया जाता है। यह प्रणाली रोगों की रोकथाम और व्यक्ति-विशेष स्वास्थ्य सुधार का एक प्रभावी उपाय है, जिससे आधुनिक जीवनशैली से उत्पन्न बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है। मधुमेह, हृदय रोग, तनाव जैसी जीवनशैली संबंधी बीमारियों की रोकथाम एवं समुचित उपचार में यह तकनीक विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हो रही है। बड़े पैमाने पर किए गए प्रकृति परीक्षणों ने यह साबित कर दिया है कि आयुर्वेदिक दृष्टिकोण न केवल वैज्ञानिक और प्रभावी है, बल्कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ पूरक रूप में भी कार्य कर सकता है। इस अभियान के माध्यम से हिमाचल प्रदेश के आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारियों ने न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त किया, बल्कि समाज में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई।

इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए हिमाचल प्रदेश के सभी आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारियों की ओर से राज्य आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. संजय गुलेरिया ने आयुष मंत्री श्री यादवेंद्र गोमा, सचिव आयुष श्रीमती राखी काहलों एवं निदेशक आयुष डॉ. निपुण जिंदल का हार्दिक आभार व्यक्त किया। उनके कुशल मार्गदर्शन एवं सहयोग से यह अभियान सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और हिमाचल प्रदेश को राष्ट्रीय स्तर पर यह गौरव प्राप्त हुआ।
प्रकृति परीक्षण के व्यापक परिणाम दर्शाते हैं कि यदि व्यक्ति अपनी प्राकृतिक संरचना के अनुसार आहार-विहार और जीवनशैली को अपनाए, तो रोगों का भार घटेगा, चिकित्सा व्यय में कमी आएगी और समाज एक स्वस्थ एवं संतुलित जीवनशैली की ओर अग्रसर होगा। यह अभियान न केवल आयुर्वेद के वैज्ञानिक महत्व को पुनर्स्थापित कर रहा है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में इसकी प्रभावशीलता को भी सुदृढ़ कर रहा है।
“आयुर्वेद कहता है – अपनी प्रकृति को पहचानें, स्वस्थ जीवन अपनाएं!”