शिमला : वैश्विक महामारी कोरोना के कारण सैकड़ों सालों से दिवाली के दूसरे दिन हिमाचल प्रदेश के शिमला ग्रामीण के धामी (हलोग) में होने वाला पत्थर मेला आज रस्म अदायगी तक सिमटकर रह गया। कोरोना की बंदिशों के चलते इस बार भी पत्थरों का खेल तो नहीं हुआ, लेकिन रस्म पूरी करने के लिए पत्थर फेंके गए। गत वर्ष भी कोरोना के कारण मेले में केवल रस्म अदायगी ही की गई थी। धामी राज परिवार के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह ने मां भद्रकाली का तिलक कर इस रस्म को पूरा किया। मेला स्थल पर न दुकानें सजीं, न ही भीड़ जुटी। शुक्रवार दोपहर तीन बजे परंपरा के अनुसार राज दरबार स्थित नरसिंह देवता और देव कुर्गण के स्थान पर पूजा-अर्चना के बाद ढोल-नगाड़ों के साथ शोभायात्रा पत्थर का खेल स्थल खेल का चौरा तक निकली।
साढ़े तीन बजे करीब 50 से 60 लोगों के साथ यह शोभायात्रा भद्रकाली के मंदिर पहुंची। यहां पूजा की गई, उसके बाद खेल का चौरा में सती का शारड़ा स्मारक पर पहुंचने के बाद राज परिवार धामी के उत्तराधिकारी राजा जगदीप सिंह खुंदों के साथ पूजा-अर्चना की। सांकेतिक रूप से एक छोर से दूसरे तक पत्थर फेंके गए। इसके बाद जगदीप सिंह ने चाकू से हाथ पर कट मारकर खून निकाला। इसके बाद भद्रकाली के निशान पर मानव रक्त से तिलक करने की रस्म को पूरा किया। इस धार्मिक आयोजन में नरसिंह देवता मंदिर के पुजारी देवेंद्र भारद्वाज, राजेश भारद्वाज, देव कुर्गण के देवकर राजेंद्र भारद्वाज सहित मेला कमेटी के पदाधिकारी कंवर रणजीत सिंह, सतीश भारद्वाज, कंवर देवेंद्र सिंह, राजीव गुप्ता, खड़क सिंह, कटेड़ू पूर्ण चंद, बाबू राम, जमोगी से लेखराम आदि शामिल हुए।
उल्लेखनीय है कि सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस पत्थर के खेल और उसमें पत्थर की चोट लगने के बाद भद्रकाली को मानव रक्त का तिलक करने की परंपरा के पीछे मान्यता है कि धामी में क्षेत्र में आई आपदाओं से प्रजा को बचाने के लिए मानव बलि दी जाती थी। उस समय की रानी ने सती होते हुए इस परंपरा को समाप्त करवाने का प्रयास किया। मानव बलि के विकल्प के रूप में यहां पत्थर का खेल करवाने और उसमें रक्त निकलने पर भद्रकाली को तिलक करने की परंपरा को शुरू करवाया था। उसके बाद से धामी में दिवाली के दूसरे दिन पत्थर का खेल होता है। इसमें दो समूह एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। एक ओर राज परिवार के लोग और जठोती, कटेड़ू, दघोई, तूनन. जबकि दूसरी ओर जठोती, जमोगी के खूंद होते हैं।
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