शिमला : शिमला नागरिक सभा शिमला शहर में नगर निगम शिमला व सरकार की लचर कार्यप्रणाली व पेयजल व्यवस्था के कुप्रबंधन के कारण पैदा हुए गंभीर पेयजल संकट व पानी के भारी भरकम बिलों को लेकर आज उपायुक्त कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया तथा मांग की गई कि शिमला शहर में पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त कर शहर के सभी क्षेत्रों में हररोज नियमित पेयजल की आपूर्ति की जाए तथा जिस तरह से सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के बिल मुआफ़ करने की घोषणा की है उसी प्रकार से शिमला शहर व अन्य शहरी क्षेत्र में भी पानी के बिल मुआफ़ कर जनता को भारी भरकम पानी के बिलों से राहत प्रदान की जाए। प्रदेश सरकार का इस प्रकार का ग्रामीण व शहरी जनता के बीच भेदभावपूर्ण रवय्या असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक है। इस प्रदर्शन में जगत राम, अनिल ठाकुर, फालमा चौहान, सोनिया, मीना जगमोहन ठाकुर, बालक राम, हिम्मी देवी, किशोरी डटवालिया, विनोद बिसरांटा, पूर्ण, अमित ठाकुर, डॉ विजय कौशल, बंटी, अमित ठाकुर, रुक्सार, श्याम लाल, विवेक कश्यप, अंकित दुबे, राकेश, रमन थारटा, नीतीश, निरूपमा, प्रेम आदि ने भाग लिया।
जबसे नगर निगम शिमला व सरकार में बीजेपी सत्तासीन हुई है, सरकार की नीतियों के कारण शिमला शहर में पीने के पानी, सफाई व्यवस्था व अन्य जनसेवाओं की दशा निरन्तर बिगड़ रही है और इनकी दरों में वृद्धि की जा रही है। बीजेपी ने पेयजल की व्यवस्था के निजीकरण के लिए कार्य करते हुए वर्ष 2018 में पेयजल की व्यवस्था के लिए कंपनी बनाकर पीने का पानी की व्यवस्था इसके हाथों में सौंप दी है। जिसके चलते जल आपूर्ति स्कीमों से पानी की पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद शहरवासियों को तीसरे दिन पानी की आपूर्ति की जा रही है और कई क्षेत्रों में तो 4-5 दिनों के बाद पानी की आपूर्ति की जा रही है। पूर्व नगर निगम के शिमला शहर की पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था के सुधार के लिए किये गए प्रयासों से आज शिमला शहर में प्रतिदिन 38 से लेकर 47 MLD तक पानी की आपूर्ति की जा रही है। पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद शहर में तीसरे दिन पानी की आपूर्ति की जा रही है जोकि बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है। इससे बीजेपी की सरकार व नगर निगम शिमला की लचर व विफल कार्यशैली व पेयजल व्यवस्था के कुप्रबंधन से जनता की परेशानी बढ़ रही है और शिमला शहर में वर्ष 2018 का गम्भीर पेयजल संकट भी नगर निगम शिमला व सरकार की लचर कार्यशैली का ही परिणाम रहा है जिससे शिमला शहर की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी हुई थी।
आगामी नगर निगम व विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा हाल ही में लोकलुभावनी घोषणाएं की गई जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के बिल मुआफ़ करने की घोषणा भी शामिल है। परन्तु शहरी क्षेत्रों में रह रहे लाखों लोगों को पानी के बिलों में छूट नही दी गई है। सरकार की नवउदारवादी नीतियों के कारण पेयजल जैसी जनसेवाओं के निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है और पानी की दरों में प्रति वर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि का निर्णय लिया गया है। इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जा रहा है और पानी के बिलों में गत 5 वर्षों में करीब 65 प्रतिशत से अधिक वृद्धि की गई है। इसके चलते शहरी क्षेत्रों में रहने वाली जनता पर इसका व्यापक असर देखा गया है और शिमला शहर में आज अधिकांश लोगों को हजारों व लाखों रुपए के पानी के बिल देकर इन पर सरकार द्वारा आर्थिक बोझ डाला जा रहा है। इससे शहरी गरीब व आम जनता को पेयजल जैसी मूलभूत आवश्यकता को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
शिमला नागरिक सभा आम जनता से आग्रह करती है कि सरकार व नगर निगम शिमला के द्वारा लागू की जा रही इन आम जनविरोधी नीतियों को पलटने के लिए संघर्ष में शामिल हो।
संजय चौहान
संयोजक