शिमला : नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों का पहला सम्मेलन यहां 1921 में हुआ था और हम सभी भाग्यशाली हैं कि हम इस आयोजन को शताब्दी वर्ष के रूप में मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि विधानसभा को सूचना देने में संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि कई बार यह महसूस किया गया है कि सदन में सूचना के अधिकार के माध्यम से सूचना अधिक शीघ्रता से प्राप्त की जा सकती है और विधानसभाओं में देरी से मिलती है। यह विषय चिंतनीय है। यह बात उन्होंने बुधवार को प्रदेश विधानसभा के सदन में आयोजित 82वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के अवसर पर कही।
उन्होंने कहा कि देश के कई महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी कौंसिल चैम्बर और इसके संसदीय इतिहास के 100 साल पूरे हुए हैं। और इस मौके पर हम सब यहां एकत्रित हुए हैं। उन्होंने कहा कि विधानमंडल के पहले चयनित अध्यक्ष भी इसी कुर्सी पर विराजमान हुए, जब विटठल भाई पटेलन ने अंग्रेजी हुकमरानों को हरा कर इस कुर्सी पर बैठे थे। उन्होंने कहा िक हमें फक्र है कि पंडित मोती लाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय और लाला लाजपतराय इस सदन को सुशोभित कर चुके हैं। अंग्रेजों के समय में शिमला ग्रीष्मकालीन राजधानी रही और यहां पर केंद्रीय असैम्बली का संचालन होता रहा। उसके बाद पंजाब विधानसभा, हिमाचल सिविल सचिवालय, ऑल इंडिया रेडियो जैसे प्रतिष्ठित संस्थान यहां से चलते रहे।
अग्रिहोत्री ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि पीठासीन अधिकारी राजनीतिक दलों से आते हैं, लेकिन यही भारतीय लोकतंत्र की विशेषता है कि पीठासीन अधिकारियों की कोई पार्टी नहीं होती है। इस संसदीय मर्यादा और उच्चतम परम्परा को हमें सुरक्षत रखने की आवश्यकता है। संदन के भीतर लोकतंत्र के सारे दारोमदार पीठासीन अधिकारियों के विवेक पर निर्भर करते हैं। लोकतंत्र परम्पराओं और मान्यताओं से चलता है, इसलिए आज इनके समक्ष पेश आ रही चुनौतियों और चिंताओं पर भी गौर करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि एक समय था कि जब पीठासीन अधिकारीपार्टी की बैठकों में नहीं जाते थे, चुनावों के दौरान प्रचार नहीं किया करते थे, लेकिन यह परम्परा अब राज्यों में टूटने लगी है। जो हमारी उच्च संसदीय मर्यादाओं और परम्पराओं के विपरीत है। मुनासिब है कि ऐसा कोई कानून नहीं है, लेकिन हमारीसंसदीय मर्यादाएं और परंपराएं तो हैं और पक्ष-विपक्ष दोनों को इसपर मिलकर सोचना होगा।
उन्होंने कहा कि देखने में आया है कि दल बदल कानून बन तो गया है, लेकिन उसको लेकर कई तरह की अवधारणाएं पैदा होती है। मामले अदालतों में जाते हैं और भारतीय लोकतंत्र कटघरे में खड़ा होता है।
अग्रिहोत्री ने कहाकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने साल में 35 बैठकों का निर्णय कर रखा है और प्रयास रहता है कि यह सभी बैठकें पूरी हों। विधानसभा में शून्य काल हो या न हो, इसपर फैसला लंबित है और इस पर आपका मार्गदर्शन भी अमूल्य है। सदन पक्ष-विपक्ष से चलता है, यह जाहिर भी है किविपक्ष के पास संख्या बल नहीं है।चर्चाओं में संतुलन लाने के लिए विपक्ष को पर्याप्त समय मिलना चाहिए अन्यथा लोगों के मुद्दे दबे रहेंगे, क्योंकि यह माना गया है कि ऑपोजीशन इज सोल ऑफ डेमोक्रेसी, विपक्ष लोकतंत्र की आत्मा है। उन्होंने पंडित ज्वाहर लाल नेहरू के शब्दों को दोहराते हुए कहा कि अध्यक्ष निष्पक्षता का प्रतीक है। संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं का सच्चा संरक्षक है। इसलिए उसे एक अद्वितीय स्थिति प्राप्त है। भारतीय संविधान द्वारा विशेषाधिकार प्राप्त है। यही बात आपने भी कही है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश विधानसभा को हिन्दुस्तान की पहली पेपरलैस असैम्बली का गौरव प्राप्त है और हिमाचल विधानसभा द्वारा स्थापित ई-विधान प्रणाली का पूरा देश अनुसरण कर रहा है।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा का दूसरा परिसर जो धर्मशाला में स्थापित है को ई-विधान की राष्ट्रीय स्तर की अकैडमी बनाने का प्रयास लंबे समय से किया जा रहा है। जब वह संसदीय कार्य मंत्री थे, तब भी इस अकैडमी को बनाने के लिए काफी प्रयास किए गए और यदि प्रधानमंत्री का वद्र्धस्त होगा तो इस स्वर्णिम यात्रा में एक और शानदार उपलब्धि दर्ज होगी।
हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल के निर्णय
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