शिमला : पाकिस्तानी इंजीनियर सलीम कुरैशी ने करीब 75 साल बाद ऑनलाइन क्लब की मदद से शिमला में अपना घर ढूंढ निकाला। भारत-पाक विभाजन के समय वह शिमला छोड़ने पर मजबूर हुए थे।पाकिस्तान में बैठे 88 वर्षीय सलीम ने वीडियो कॉल पर न सिर्फ घर देखा, बल्कि सोशल मीडिया पर इसे शेयर भी किया।
सोशल मीडिया पर इंडिया-पाकिस्तान हेरिटेज क्लब नाम से चल रहे ऑनलाइन क्लब में सलीम ने कुछ दिन पहले एक पोस्ट शेयर की थी। पेशे से टेक्सटाइल इंजीनियर रहे सलीम का कहना था कि वह साल 1933 में शिमला में पैदा हुए थे। उनके पिता सेना में थे। शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल से शुरुआती पढ़ाई करने वाले सलीम ने लिखा कि वह शिमला के सभी नामी जगहों को जानते हैं। यहां कई जगहों के नाम भी लिखे, जहां दोस्तों के साथ आना-जाना होता था।
उस घर का भी जिक्र किया, जिसमें वह किरायेदार थे। इच्छा जताई कि जिंदगी के आखिरी पड़ाव में वह अपना यह घर देखना चाहते हैं। इस क्लब से शिमला के कई लोग भी जुड़े हैं। इनमें एक छोटा शिमला के न्यू फ्लावरडेल के रहने वाले मोहित बग्गा ने सलीम के दिए फोटो के अनुसार शहर में घूमकर उनका घर ढूंढ निकाला। जाखू में पीसी चैंबर के पास उनका यह घर मिला। बग्गा ने 15 मिनट वीडियो कॉल कर सलीम को उनका घर दिखाया। आसपास के रास्ते और सड़कें भी दिखाईं। यह देखकर सलीम भावुक हो गए। बोले कि शिमला में सब बदल गया है। जहां रास्ते नहीं थे, वहां सड़कें बन गई हैं।
आप को बता दें कि इंडिया-पाकिस्तान हेरिटेज क्लब नाम से चल रहे ऑनलाइन क्लब आजादी से पहले शिमला में रहने वालों की यादें ताजा करने में मददगार साबित हो रहा है। पेशे से इंजीनियर मोहित बग्गा ने बताया कि इससे पहले भी पाकिस्तान के दो लोगों ने शिमला में अपने घर की फोटो भेजी थी। जब तलाश की तो ये घर कैथू में मिले। उन्होंने कहा कि क्लब में दुनिया भर के लोग जुड़े हैं। क्लब के जरिये कई लोग शिमला में अपने घर को देख चुके हैं। मोहित बग्गा ने अनसीन शिमला के नाम से एक किताब भी लिखी है, जिसमें आजादी से पहले के शिमला की 350 से अधिक अनदेखी तस्वीरें हैं।
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