शिमला : बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा ने कहा कि जब तक चीन और ताइवान के संबंध ‘बेहद नाजुक’ बने रहेंगे, तब तक मैं भारत में ही रहना पसंद करूंगा। यह इच्छा बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा ने बुधवार को ताइवान यात्रा को लेकर आयोजित ऑनलाइन न्यूज कॉन्फ्रेंस के दौरान जाहिर की। उन्होंने कहा कि कांगड़ा जिला के धर्मशाला की आबोहवा और यहां की भौगोलिक परिस्थितियां उनके लिए बेहद अनुकूल हैं। उनके स्वास्थ्य के लिए यह जगह बहुत अच्छी है। यहां बर्फीले पहाड़, झीलें और जंगल सब कुछ है। यह जगह उन्हें बेहद पसंद हैं।
मैं भारत में ही शांति के साथ रहना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि जब वह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले थे तो उनसे कहा था कि वह भारत में ही अपने बचे हुए जीवन के दिन व्यतीत करना चाहते हैं। जब भी उनकी मृत्यु हो तो यहीं हो। दलाईलामा ने बुधवार को चीनी नेताओं की आलोचना करते हुए कहा है कि वे विभिन्न संस्कृतियों में विविधता के महत्व को नहीं समझते। असल में ‘बहुत ज्यादा नियंत्रण’ लोगों को नुकसान ही पहुंचाएगा।
धार्मिक समरसता बढ़ाने के लिए मैंने दिल्ली के प्रमुख मंदिरों और मस्जिदों की यात्रा की है। कुछ समय पहले मैं जब दिल्ली गया था, तो जामा मस्जिद में मुस्लिम भाइयों की टोपी पहनकर उनकी विधि के अनुसार प्रार्थना में शामिल हुआ। जीवन में अगर मुझे कभी अवसर मिला तो मक्का जाना चाहूंगा।
अंत में उन्होंने कहा कि दर्शन के स्तर पर अलग दृष्टिकोण रखने के बावजूद सभी मजहब प्रेम का संदेश देते हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में राजनेताओं और कई मामलों में अर्थशास्त्रियों को समस्या की जड़ माना जा सकता है। यहीं से मजहबी मतभेद पैदा हो रहे हैं। अब मजहब का भी राजनीतिकरण शुरू हो चुका है। यहीं से सारी समस्या उत्पन्न हो रही है। ताइवान के सवाल पर उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से ताइवान को चीन से बड़ी आर्थिक मदद मिलती रही है।
जहां तक संस्कृति का सवाल है तो चीनी संस्कृति सहित बुद्धिज्म को अपनाने वाले भाई-बहनें ताइवान के भाई-बहनों से काफी कुछ सीख सकते हैं। चीनी नेताओं से मुलाकात के सवाल पर उन्होंने कहा कि मेरी उम्र लगातार बढ़ रही है, लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने की फिलहाल कोई खास योजना नहीं है।
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