शिमला : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंडी 5 नवम्बर को 500 वर्ष से अधिक प्राचीन प्रसिद्घ बाबा भूतनाथ के लाइव दर्शन करेंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री श्रद्धालुओं से भी बातचीत करेंगे। इसके अलावा प्रधानमंत्री मां ज्वालामुखी के भी दर्शन करेंगे।
याद रहे कि प्रधानमंत्री मोदी पांच नवंबर को केदारनाथ धाम से ही देश के प्रमुख मंदिरों के लाइव दर्शन करेंगे और इस दौरान प्रधानमंत्री वर्चुअल माध्यम श्रद्घालुओं से भी रूबरू होंगे। इसमें देश के विभिन्न मंदिरों की सूची में हिमाचल के ज्वालामुखी और मंडी के भूतनाथ मंदिर को भी शामिल किया गया है। इस दौरान ज्वालामुखी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर स्वंय उपस्थित रहेंगे। उपायुक्त मंडी अरिंदम चौधरी ने बताया कि प्रधानमंत्री के इस लाइव कार्यक्रम के लिए पूरी व्यवस्था की जा रही है। बता दें कि प्रधामंत्री के द्वारा बाबा भूतनाथ मंदिर के लाइव दर्शनों के बाद विश्व पटल पर मंडी को पहचान मिलेगी।
बता दें कि छोटी काशी मंडी में जल्द ही शिव धाम भी बनेगा जो भव्यता और दिव्यता में किसी अजूबे से कम नहीं होगा। मंडी के कांगणीधार में साढ़े नौ हेक्टेयर क्षेत्र में बनने वाला उत्तर भारत का यह पहला ऐसा धार्मिक पर्यटन स्थल होगा जो बाहर से आने वाले पर्यटकों के अलावा स्थानीय लोगों के आकर्षण का केंद्र भी होगा। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने शिव धाम की सौगात देकर छोटी काशी मंडी को धार्मिक पर्यटन के आकर्षण का केंद्र बनाने का सपना साकार किया है। इस अनूठी परियोजना से देश.दुनिया में मंडी धार्मिक.सांस्कृतिक पर्यटन मानचित्र पर मजबूती से उभरेगा। शिव धाम से दुनियाभर के पर्यटकों के लिए मंडी में पर्यटन गंतव्य का नया स्वरूप देखने को मिलेगा।
बता दें कि मंडी रियासत का इतिहास सुकेत रियासत की सातवीं पीढ़ी से प्रारंभ होता है। जब सुकेत के राजा साहूसेन के छोटे भाई बाहूसेन ने अपने भाई से रूष्ट होकर कुछ विश्वास पात्र सैनिकों को साथ लेकर लोहारा जो तत्कालीन सुकेत रियासत की राजधानी थी, छोडकऱ बल्ह के ही हाट में अपनी राजधानी बसाई थी। इसी के साथ मंडी रियासत की स्थापना हुई थी। बाहूसेन ने ही हाटेश्वरी माता के मंदिर की स्थापना की थी। इसके पश्चात बाहूसने मंगलौर में जा बसा था। 1280 ई में बाणसेन ने भ्यूली में मंडी रियासत की राजधानी स्थपित की। जो बटोहली होते हुए 1527 ई में अजबर सेन ने बाबा भूतनाथ के मंदिर के साथ ही आधुनिक मंडी शहर की स्थापना की थी।
मंडी भगवान भोले शंकर की कर्मभूमि के रूप में भी विख्यात है। बात इतिहास चली है तो यह भी बताते चलें कि विद्वान इस नगरी को कई पौराणिक घटनाओं से जोड़कर देखते हैं। कहते हैं कि पर्वतराज की पुत्री पार्वती को विदा कर ले जाते समय भगवान शिव को संसार का ध्यान आया तो वे बारातियों के साथ ही नई नवेली दुलहन को वहीं छोड़ कर तपस्या में लीन हो गए। शिव के वापस न आने पर पार्वती रोने लगी, उसके विलाप को सुनकर पुरोहित आगे आया। उसने शिव का आहवान करने के लिए मंडप की स्थापना की गई। मंडप में प्रकट होकर भगवान शिव ने कहा कि उन्हें क्यों बुलाया गया है। इस पर पुरोहित ने कहा कि आपकी याद में रोते रोते पार्वती सो गई हैं। तभी से इस स्थान का नाम मंडप से मांडव्य और फि र मंडी पड़ा। उसी प्रकार मांडव्य ऋ षि ने यहां पर भगवान शिव की तपस्या की। जिससे उनमें अपार शक्ति का संचार हुआ। कहा जाता है कि मांडव्य ऋ षि को यमराज ने भूलवश सूली पर चढ़ा दिया। जब यमराज को अपनी भूल का अहसास हुआ तो ऋ षि को सूली से उतार दिया। मगर मांडव्य ऋ षि ने यमराज का श्राप दिया, इस श्राप के कारण यमराज महाभारत काल में विदुर के रूप में पैदा हुए और जिस मंडप में शिव के पुरोहित ने तपस्या की थी वो लंबे समय तक रिक्त रहा।
बाबा भूतनाथ मंडी जनपद के अधिष्ठाता हैं। इस स्थान पर जहां बाबा भूतनाथ का मंदिर है, भोलेनाथ स्वयंभू शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए हैं। जिनके दर्शन पांच नवंबर को प्रधानमंत्री वर्चअल माध्यम से करेंगे। जिसका प्रसारण विश्व भर में होने से बाबा भूतनाथ मंदिर को एक नई पहचान मिलेगी और धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए सरकार व प्रशासन तैयारियों में जुटा है।
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