शिमला : भा.वा.अ.शि.प. -हिमालय वन अनुसंधान संस्थान शिमला में, भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से आजीविका सृजन के लिए महत्वपूर्ण समशीतोष्ण औषधीय पौधों की खेती एवं सरंक्षण विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आगाज 26 जून, 2024 को हुआ, जो तीन दिन तक चलेगा । डॉ॰ जगदीश सिंह, वैज्ञानिक-जी एवं प्रशिक्षण कोओर्डिनेटर/समन्वयक ने बताया कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित किया गया । इसका उद्देश्य औषधीय पौधों की खेती की जानकारी अन्य हितधारकों तक पहुंचाना है ताकि वो मास्टर ट्रेनर के रूप में जानकारी को अन्य लोगों तक़ पहुंचाए । उन्होंने बताया कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिमालय वन अनुसंधान संस्थान, शिमला, जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर, डॉ॰ यशवंत सिंह परमार बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय नौणी, सोलन, गैर सरकारी संघठन के वैज्ञानिक, अधिकारी औषधीय पौधों से संबन्धित विभिन्न विषयों जैसे कि पहचान, उपयोग, कृषिकरण, मार्केटिंग, आजीविका में योगदान इत्यादि पर व्याख्यान देंगे । इसके अलावा दूसरे दिन प्र्तिभागियों को शिलारू अनुसंधान पौधशाला एवं नारकंडा वन के आसपास के क्षेत्रों का दौरा करवाया जाएगा, जिसमें औषधीय पौधों की पहचान एवं खेती की तकनीकों से संबन्धित प्रेकटिकल डेमोस्ट्रेशन/ व्यवहारिक जानकारी दी जाएगी । राजीव कुमार, प्रधान मुख्य वन अरण्यपाल एवं होफ़्फ़, हिमाचल प्रदेश वन विभाग ने मुख्यातिथि के रूप में शिरकत की और उन्होंने कहा कि अब लोग रसायनिक दवाओं के स्थान पर आयुर्वेदिक दवाओं की तरफ जा रहे हैं । आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयुक्त जड़ी-बूटियों में उनके वास्तविक घटकों का उचित गुणवत्ता में उपलब्ध होना बहुत आवश्यक है तभी पूरा लाभ हो सकता है और जड़ी-बूटियों को उनके आवास में उगाना भी बहुत आवश्यक है तभी उनमे पूरे पोषक तत्व उपलब्ध हो पाएंगे । उन्होंने औषधीय पौधों पर संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्य को सराहा और संस्थान द्वारा विकसित कि गयी कडु, मुश्कवाला, वनककड़ी की प्रजातियों के लिए भी संस्थान के प्रयासों की सराहना की । उन्होने जड़ी बूटियों के संरक्षण एवं वैज्ञानिक दोहन की आवश्यकता पर भी बल दिया ताकि वे लुप्त होने से बच सकें और मूल्य संस्करण (Value addition) और प्रसंस्करण की महत्ता के प्रति जागरुकता करने को भी बल दिया ताकि खाली समय का सदुपयोग अपने उत्पादों में प्रसंस्करण द्वारा मूल्य संस्करण (Value addition) और करके किसान अपने लाभ में वृद्धि कर पाएं । उन्होंने कहा कि जंगलों में औषधीय पौधों का संरक्षण जरूरी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिमालयी क्षेत्र में औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से वैज्ञानिक खेती करने आवश्यकता है । औषधीय पौधों की खेती विविधिकरण एवं अतिरिक्त आय के लिए अच्छा विकल्प है ।
हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला के निदेशक डॉ. संदीप शर्मा ने कहा कि उत्तर पश्चिम हिमालय में आयुर्वेड़ा का जन्म हुआ । आयुर्वेदा के लिए हिमालयन जड़ी-बूटियों का संरक्षण करना अति आवश्यक है । अब हम आयुर्वेदिक दवाईयों की तरफ जा रहे हैं । हिमालयन जड़ी-बूटियों की खेती करके उनकी उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है और उनका संरक्षण भी हो पाएगा और आयुर्वेदिक दवाईयों में उनके वास्तविक घटक डाले जा सकें । उन्होने बताया कि संस्थान ने कडु, निहानी, वनककड़ी औषधीय पौधो की उच्च गुणवता वाली पाँच नई किस्म/वेराईटी विकसित की है, जिसका स्टॉक जगतसुख अनुसंधान पौधशाला में है और कहा कि क्षेत्र में उच्च मूल्य वाले औषधीय पौधों की व्यावसायिक खेती करके इसे एक स्थायी आय सृजन गतिविधि के रूप में बनाने की बहुत संभावना है । इन मूल्यवान औषधीय पौधों की रक्षा और संरक्षण का एकमात्र तरीका उनका कृषिकरण है । इसके अलावा उन्होने प्रशिक्षुओं को औषधीय पौधों की जैविक खेती के लिए आधुनिक नर्सरी तकनीक और खाद और वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन के विषय मेंजानकारी दी । डॉ. जगदीश सिंह, वैज्ञानिक-जी, हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने महत्वपूर्ण समशीतोषण औषधीय पौधों की खेती : ग्रामीण आय बढ़ाने हेतु एक विकल्प” विषय पर व्यख्यान दिया । उन्होंने बताया कि संस्थान ने बागवानी पौधों के साथ औषधीय पौधों को अंतरवर्तीय फसल उगाने के मॉडल विकसित किए है । जिससे किसान बागवानी फसल के मध्य बचे भाग का उपयोग औषधीय पौधों को उगाने के लिए कर सकते है और इन्हे उगाकर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं ।
डॉ. लाल सिंह, निदेशक, हिमालय अनुसंधान समूह, शिमला ने महत्वपूर्ण औषधीय पौधों जैसे कि कडु, चिरायता, निहानी, वन क्ककड़ी, छोरा सलाम मिश्री इत्यादि की संरक्षण, कृषिकरण, वाणिज्यिक उपयोग और आजीविका के लिए योगदान के बारे में अपने ज्ञान का साझा किया । डॉ. यशपाल शर्मा, यू एच फ नौणी, सोलन, ने चिरायता, जंगली गेंदा, कलीहारी, जैसे महत्वपूर्ण औषधीय एवं सुगंधित पौधों कि कृषिकरण तकनीकों पर जानकारी दी । प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन 28 जून, 2024 को होगा । डॉ॰ वनीत जिष्टू, वैज्ञानिक-ई, हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने महत्वपूर्ण उच्च ऊंचाई वाले औषधीय पौधों की पहचान और उपयोग के बारे जानकारी दी । श्री. पीतांबर सिंह, वैज्ञानिक-डी, हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने जूनिपर की नर्सरी और पोधरोपण तकनीक के बारे जानकारी डी । इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में शिमला, सोलन क्षेत्र के 30 प्रतिभागी, जिसमें अध्यापक, पंचायत प्रतिनिधि, कर्मचारी, महिला मण्डल तथा युवा मण्डल के सदस्य, आयुर्वेदा चिकित्सक एवं कर्मचारी, योगा अध्यापक, गैर सरकारी संगठन ईटीएफ़ कुफ़री के सैन्य अधिकारी भाग ले रहे हैं ।
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