केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों के आह्वान पर सीटू,इंटक,एटक,केंद्रीय कर्मचारियों के संयुक्त समन्वय समिति,बीमा,बैंक,बीएसएनएल,डाक कर्मियों,एजी ऑफिस,विभिन्न कायक्षेत्रों में कार्यरत मजदूरों व केंद्रीय कर्मचारियों ने मजदूरों के कानूनों को खत्म करके चार लेबर कोड बनाने,सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण,ओल्ड पेंशन स्कीम बहाली,आउटसोर्स नीति बनाने,स्कीम वर्करज़ को नियमित सरकारी कर्मचारी घोषित करने,मनरेगा मजदूरों को दो सौ दिन का रोज़गार देने व साढ़े तीन सौ रुपये दिहाड़ी लागू करने,करुणामूलक रोज़गार देने,छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर करने,मजदूरों का न्यूनतम वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित करने,पेट्रोल,डीज़ल,रसोई गैस व खाद्य वस्तुओं की भारी महंगाई पर रोक लगाने,सरकारी सेवाओं के निजीकरण,मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी संशोधनों व नेशनल मोनेटाइजेशन पाइप लाइन आदि मुद्दों पर दूसरे दिन भी प्रदेशव्यापी हड़ताल की। इस दौरान हज़ारों मजदूर व कर्मचारी मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतरे।
शिमला में मजदूरों व कर्मचारियों ने डीसी ऑफिस शिमला से लोअर बाजार होते हुए शेर ए पंजाब नाज चौक तक एक रैली का आयोजन किया। रैली में विजेंद्र मेहरा,जगत राम,बी एस चौहान,राहुल मेहरा,भारत भूषण,पूर्ण चंद,सेठ चंद,रमाकांत मिश्रा,बालक राम,हिमी देवी,विनोद बिरसांटा,किशोरी ढटवालिया,ओंकार शाद, संजय चौहान,बलबीर पराशर,विवेक कश्यप,रामप्रकाश,रंजीव कुठियाला,पूर्ण चंद,पवन शर्मा,विक्रम,चमन,दुष्यंत आदि मौजूद रहे।
सीटू राष्ट्रीय सचिव डॉ कश्मीर ठाकुर,प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,महासचिव प्रेम गौतम,इंटक प्रदेशाध्यक्ष हरदीप सिंह बाबा,महासचिव सीता राम सैनी, एटक प्रदेशाध्यक्ष जगदीश भारद्वाज,महासचिव देवक़ीनन्द,एनजेडआईईए प्रदेशाध्यक्ष सुभाष भट्ट,महासचिव प्रदीप मिन्हास,एचपीएमआरए प्रदेशाध्यक्ष हुक्म चंद शर्मा व महासचिव सेठ चंद शर्मा ने कहा कि दूसरे दिन भी प्रदेश के हज़ारों मजदूर व कर्मचारी हड़ताल में शामिल रहे। उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों व औद्योगिक घरानों के हित में कार्य कर रही है तथा मजदूर,कर्मचारी व आम जनता विरोधी कार्य कर रही है। पिछले सौ सालों में बने चौबालिस श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता,मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया। यह साबित हो गया है कि यह सरकार मजदूर,कर्मचारी व जनता विरोधी है व लगातार गरीब व मध्यम वर्ग के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार की पूँजीपतिपरस्त नीतियों से अस्सी करोड़ से ज़्यादा मजदूर व आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने का आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित सरकारी कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स,ठेका,दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है और न ही उनके नियमितीकरण के लिए कोई नीति बनाई जा रही है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से इस क्षेत्र से जुड़े लोग रोज़गार से वंचित हो जाएंगे व विदेशी कम्पनियों का बोलबाला हो जाएगा। मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण कोरोना काल में करोड़ों मजदूर बेरोज़गार हो गए हैं परन्तु मजदूरों को कोई आर्थिक राहत देने के बजाए उन्हें नियमित रोज़गार से वंचित करके फिक्स टर्म रोज़गार की ओर धकेला जा रहा है। वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से भारी शोषण किया जा रहा है। छठे वेतन आयोग की विसंगतियों से सरकारी कर्मचारी भारी संकट में हैं। भारी महंगाई व बेहद कम वेतन से मजदूर व कर्मचारी बेबसी की स्थिति में हैं।
उन्होंने मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन इक्कीस हज़ार रुपये घोषित किया जाए। केंद्र व राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए। किसानों की फसल के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू की जाएं। महिला शोषण व उत्पीड़न पर रोक लगाई जाए। नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए। बढ़ती बेरोज़गार पर रोक लगाई जाए व बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए। आंगनबाड़ी,मिड डे मील,आशा व अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा में दो सौ दिन का रोज़गार दिया जाए व राज्य सरकार द्वारा घोषित साढ़े तीन सौ रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए। निर्माण मजदूरों की न्यूनतम पेंशन तीन हज़ार रुपये की जाए व उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए। कॉन्ट्रैक्ट,फिक्स टर्म,आउटसोर्स व ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोज़गार दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। नई पेंशन नीति(एनपीएस) की जगह पुरानी पेंशन नीति(ओपीएस) बहाल की जाए। बैंक,बीमा,बी.एस.एन.एल.,रक्षा,बिजली,परिवहन,पोस्टल,रेलवे,एन.टी.पी.एस.,एन.एच.पी.सी.,एस.जे.वी.एन.एल.,कोयला,बंदरगाहों,एयरपोर्टों,सीमेंट,शिक्षा,स्वास्थ्य व अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश व निजीकरण बन्द किया जाए। मोटर व्हीकल एक्ट में परिवहन मजदूर व मालिक विरोधी धाराओं को वापिस लिया जाए। चबालिस श्रम कानून खत्म करके बनाई गयी मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं(लेबर कोड) बनाने का निर्णय वापिस लिया जाए। सभी मजदूरों को ईपीएफ,ईएसआई,ग्रेच्युटी,नियमित रोज़गार,पेंशन,दुर्घटना लाभ आदि सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए। भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। पेट्रोल,डीज़ल,रसोई गैस व खाद्य वस्तुओं की कीमतें कम की जाएं। रेहड़ी,फड़ी तयबजारी क़े लिए स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए। सेवारत महिला कर्मचारियों को दो वर्ष की चाइल्ड केयर लीव दी जाए। सेवारत कर्मचारियों की पचास वर्ष की आयु व तेंतीस वर्ष की नौकरी के बाद जबरन रिटायर करना बंद किया जाए। सेवाकाल के दौरान मृत कर्मचारियों के आश्रितों को बिना शर्त करूणामूलक आधार पर नौकरी दी जाए।