बान के पौधेे सामाजिक, आर्थिक एवं पारिस्थितिकी की दृष्टि से उपयोगी
शिमला : बान प्रजाती के पौधे जलावन व चारे के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी उपयोगी है। यह पौघे सामाजिक, आर्थिक एवं पारिस्थितिकी की दृष्टि से भी बहुत ही उपयोगी है। राज्य में बान की 5 प्रजातियां पाई जाती है, जो प्रदेश के हर क्षेत्र में पाई जाती है। यह बात हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला के वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक पीताम्बर सिंह नेगी ने बुधवार को संस्थान में ओक प्रजातियों की बीज, नर्सरी एवं रोपण तकनीक पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर कही। उन्होंने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा कहा कि राज्य में बान की 5 प्रजातियां पाई जाती है। इसमें निचले क्षेत्रों में बानी व 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर बान प्रजाति पाई जाती है। उसेस फपर यानि नारकंडा व शिलारू की हाईट पर मोहरू ओक तथा उससे अधिक ऊंचाई पर खरसू प्रजाति के बान पाई जाती है। वहीं किन्नौर में ब्रे ओक प्रजाति के बान पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसका उपयोग जलावन यानि जलाने के लिए किया जाता है। साथ ही पहले इसके गोंद को निकालकर सियाई के रूप में प्रयोग करते थे, जिससे तख्ती पर कलम से लिखा जाता था। इसके अलावा बान की भूमिका पर्यावरण संरक्षण में में बहुत ही महत्वपूर्ण है। इससे जहां जंगलों में पानी के स्त्रोत रिचार्ज होते हैं वहीं इनके जंगलों में तानमान भी कम रहता है। इसके अलावा बान के पौधे भूस्खलन को भी रोके रखते हैं। 25 अक्तूबर तक चलने वाले इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभागियों को बीज, नर्सरी, प्लांटेशन, बिमारियों व रोकथाम को लेकर प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में 30 प्रशिक्षिणार्थी भाग ले रहें हैं। इस मौके पर वैज्ञानिक डा. स्वर्ण लता भी मौजूद थी।
कई उत्पाद मुहैया करवाती है ओक प्रजातियां: कर्नल मोहन सिंह
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कर्नल मोहन सिंह (सेनानायक,133-इको-टास्क फोर्स कुफ़री) ने बान के पौधे के महत्व के बारे में बताया तथा कहा कि ओक प्रजातियां चारा, जलावन की लकड़ी एवं अन्य कई उत्पाद मुहैया करवाती है। उन्होंने कहा की यह प्रशिक्षण कार्यक्रम अन्य हितधारकों के लिए अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होगी, क्योंकि इस प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षिणार्थियों को बान प्रजातियों की विभिन्न पहलुओं पर वैज्ञानिको द्वारा विस्तृत जानकारी दी जाएगी।
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