शिमला : हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने 07 दिसम्बर, 2022 को बड़ा गाँव, रझाना पंचायत, शिमला में कृषि-वानिकी पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया । डॉ॰ संदीप शर्मा, निदेशक ने कृषि-वानिकी तथा 5-जी वानिकी में की महत्वता के बारे में बताया । जिसका उदेशय वनो के बाहर वन क्षेत्र को बढ़ाना है । ताकि राष्ट्रीय वन नीति के लक्ष्यों को पूरा किया जा सके ।
डॉ. जगदीश सिंह, वैज्ञानिक-एफ, प्रभागाध्यक्ष, विस्तार प्रभाग ने अपने व्याख्यान में बताया कि कृषि वानिकी काफी पहले से प्रचलित है परंतु वैज्ञानिक तरीके से कृषि वानिकी करना अति आवशयक है । किसान कृषि वानिकी अपनाकर एक से अधिक फसलों को एक भूखंड पर उगा कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं । विकसित देशों के अपेक्षा हमारे देश में प्रति व्यक्ति बहुत कम वन है, इस कमी को कृषि वानिकी से पूरा किया जा सकता है । इसके अलावा उन्होने बताया कि वृक्ष प्रजातियों के मध्य औषधियों पौधों जैसे कि वन-ककड़ी, निहानी, चोरा, इत्यादि को उगाकर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं । पौधरोपण से भूक्षरण की रोकथाम होगी और ग्रामीणों के लिए चारा भी उपलब्ध होगा । उन्होंने बताया कि वानिकी गतिविधियां गैर-वन सरकारी और निजी भूमि, किसानों के खेतों के किनारे, घरों के आसपास, सामुदायिक भूमि, बंजर भूमि और नालों के आसपास की जा सकती हैं । डॉ. सिंह ने बताया कि प्रदर्शन गाँव के किसानो के लिए संस्थान ने व्यूल,कचनार, सिरिस तथा उच्च गुणवत्ता वाली घास हेतु पौधे नर्सरी में तैयार किए है, जिसे किसानों को वितरित किया जाएगा । डॉ॰ प्रवीण रावत, ने बांस की खेती द्वारा आजीविका विषय पर व्यख्यान दिया । उन्होनें बताया कि वांस उगाने से स्थानीय लोग अपनी जरूरतें जैसे कि चारा, गैर अकाष्ठ उत्पाद, इत्यादि पूरी कर सकते हैं । नालों के किनारे वांस लगाने से मृदा अपरदन भी रोका जा सकता है ।
डॉ॰ जोगिंदर सिंह ने मोटे अनाज: समय की आवश्यकता विषय पर जानकारी दी उन्होंने कहा कि 50 साल पहले तक भारत में मिलेट्स जैसे बाजरा, ज्वार, ज्वार, रागी, कोदो, कुटकी आदि प्रमुख अनाज थे । लेकिन समय के साथ इनका महत्व खो गया और भारतीयों ने पश्चिमी देशों से प्रभावित होकर मिलेट्स को मोटे अनाजों और खासतौर पर ग्रामीण खाने के रूप में देखना शुरू कर दिया । जिस कारण इनकी खेती में भी कमी आई और साथ ही, किसानों की फसल के लिए बाजार भी घटे । मोटे अनाज़ को ‘सुपरफूड’ और ‘ स्मार्टफूड’ का दर्जा दिया गया है, क्योंकि यह पोषक तत्वों जैसे कि प्रोटीन, फाइबर, बी विटामिन, कैल्शियम, आयरन, मैंगनीज, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जिंक, पोटेशियम, कॉपर और सेलेनियम से भरपूर होते हैं । मिलेट्स एंटीऑक्सिडेंट, फ्लेवोनोइड्स, एंथोसायनिन, सैपोनिन और लिग्नन्स का एक पावरहाउस भी हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद हैं। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मोटे अनाज प्रासंगिक हो चले हैं. क्योंकि मोटे अनाजों की खेती करने के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है । कम पानी, उर्वरक और कीटनाशकों के साथ कम उपजाऊ मिट्टी में भी मिलेट्स को उगाया जा सकता है । उच्च तापमान में भी ये अच्छा उगते हैं इसी कारण इन्हें ‘ क्लाइमेट-स्मार्ट’ अनाज कहा जाता है । हरित क्रांति के बाद गेहूं और धान के उत्पादन में हुई अभूतपूर्व बढ़ोतरी के चलते मोटे अनाज लोगों की थाली से गायब हो चुके हैं । भारत सरकार लोगों को मिलेट्स के बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूक कर रही है । ताकि देश के हर इलाके के लोग इसे अपने डाइट में शामिल करें । मिलेट्स के लिए किसानों को अच्छा बाजार और अच्छी कीमत मिल सकें । इसी को ध्यान में रखते हुये देश के प्रंधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय मंचों में मोटे अनाजों के बारे में प्रचार प्रसार किया तथा भारत सरकार के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र ने साल 2023 को International Year of Millets के रूप में घोषित किया है । उन्होंने लोगों को मोटे अनाज के महत्व इसकी अवश्यकता के बारे में बताने के साथ-साथ किसानों को मोटा अनाज उगाने तथा इसे नियमित अपने भोजन में शामिल करने के लिए प्रेरित भी किया । इस अवसर पर रीना ठाकुर, प्रधान, श्री मुकुन्द मोहन, उप प्रधान रझाना पंचायत सहित 40 ग्रामीणों ने जागरूकता शिविर में भाग लिया ।
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