शिमला : भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) सरकार द्वारा प्रदेश मे बिजली के निजीकण, स्मार्ट मीटर नीति व बिजली विधेयक, 2022 के निर्णय को लागू करने के निर्णय का विरोध करती है तथा सरकार से मांग करती है कि इस जनविरोधी नीति को तुरन्त वापिस ले। इससे राज्य बिजली बोर्ड को समाप्त कर बिजली का वितरण भी निजी हाथों में सौंपा जाएगा। जिससे निजी कंपनियों के मुनाफा कमाने के चलते बिजली महंगी होगी तथा आम जनता पर और अधिक आर्थिक बोझ पड़ेगा। यदि सरकार तुरन्त प्रभाव से प्री पेड स्मार्ट मीटर लगाने के लिए किए गए टेंडर के इस जनविरोधी निर्णय को वापिस नहीं लेती तो पार्टी सरकार की इस नीति के खिलाफ जनता को लामबंद कर आंदोलन किया जाएगा।
वर्ष 2003 में तत्कालीन बीजेपी की वाजपेई सरकार ने बिजली क्षेत्र मे निजीकरण को बढ़ावा देते हुए इसके उत्पादन के साथ वितरण को भी निजी हाथों में देने के लिए विद्युत विधयेक, 2003 लाया गया था। जिसमें राज्य विद्युत बोर्डों के साथ ही निजी कंपनियों को भी बिजली के वितरण का जिम्मा सौंपा जाना था। इसके पश्चात् बीजेपी की मोदी सरकार ने विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 तथा विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2022 लाकर बिजली क्षेत्र मे निजी कंपनियों को लाने के लिए तेजी से कदम उठाए तथा देश में प्री पेड स्मार्ट मीटर लगाने के कार्य को गति देने का कार्य किया। बिजली क्षेत्र में सुधार के नाम पर राज्य सरकारों को लागू करने के लिए दबाव बनाया गया। दिसंबर, 2023 तक मोदी सरकार ने 22 करोड़, 22 लाख 64 हज़ार प्री पेड स्मार्ट मीटर लगाने की इजाज़त दे दी है तथा इसमें से 9 करोड़ 86 लाख 90 हज़ार स्मार्ट मीटर विभन्न राज्यों में लगाए जा चुके हैं। मोदी सरकार देश मे बिजली क्षेत्र के निजीकरण के विरोध के बावजूद तेजी से देश मे बिजली क्षेत्र के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है तथा प्री पेड स्मार्ट मीटर के माध्यम से अडानी अंबानी जैसी निजी कम्पनियों को मुनाफा देने का कार्य कर रही है।
हिमाचल प्रदेश में भी कोविड काल में वर्ष 2021 में पूर्व की बीजेपी की जयराम सरकार ने विद्युत् सुधार(RDSS) के नाम पर इस स्मार्ट मीटर योजना को लागू करने का निर्णय लिया तथा वर्ष 2022 मे केंद्र सरकार, राज्य सरकार तथा राज्य विद्युत् बोर्ड के मध्य एक त्रिपक्षीय समझौता किया गया। इसमें केंद्र सरकार द्वारा तय सभी शर्तों को लागू करने पर हामी भरी गई। इस समझौते के अंतर्गत बिजली बोर्ड में 3700 करोड़ रूपए की एक परियोजना लागू की गई। जिसमे 1800 करोड़ रूपए प्री पेड स्मार्ट मीटर खरीद के लिए रखे गए थे। केंद्र सरकार द्वारा इसके लिए मात्र 360 करोड़ रूपए(1350 रु. प्रति मीटर) दिए जाने हैं। परन्तु यह राशी मीटर की खरीद के पश्चात् दिए जाएंगे। पूर्व सरकार ने इसके लिए निविदाएं आमंत्रित कर दी थी। जिसमें एक मीटर की कीमत 8000 से 10000 रुपए बताई गई हैं। जबकि एक साधारण इलेक्ट्रॉनिक बिजली मीटर की कीमत मात्र 400 से 600 रुपए ही है। सरकार की नीति के अनुसार प्री पेड स्मार्ट मीटर के लिए प्रति माह 90 से 125 रुपए उपभोक्ता से लेने की योजना थी।पूर्व बीजेपी सरकार द्वारा स्मार्ट सीटी के पैसे से शिमला शहर व धर्मशाला में 1,51,740 प्री पेड स्मार्ट मीटर लगा दिए गए हैं। प्रदेश मे कांग्रेस सरकार बनने के पश्चात् पूर्व बीजेपी सरकार द्वारा प्री पेड स्मार्ट मीटर के लिए किया गया टेंडर रद्द कर दिया था।
अब वर्तमान सरकार ने फिर से 26 लाख प्री पेड स्मार्ट मीटर खरीद के लिए टेंडर कर दिया है। इस पर 3100 करोड़ रूपए खर्च किए जायेंगे। इस टेंडर में 9200 रुपए के करीब प्रति मीटर कीमत बताई गई है। जबकि अन्य राज्यों में प्री पेड मीटर की टेंडर में 3400 रुपए प्रति मीटर तय की गई है। यह बहुत बड़ा अंतर है तथा इससे निजी कंपनियों के द्वारा स्मार्ट मीटर के नाम पर की जा रही लूट सामने आई है। इसके साथ ही आम जनता से प्री पेड स्मार्ट मीटर के एवज में 90 से 125 रूपये देने होंगे तथा यदि स्मार्ट मीटर खराब या जल जायेगे तो इसकी पूरी कीमत करीब 9200 रुपए उपभोक्ता से वसूले जाएंगे। पार्टी भारी भरकम कीमतों पर स्मार्ट मीटर खरीद करने वाले आधिकारियों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही की मांग करती है।
हिमाचल सरकार भी इन प्री पेड स्मार्ट मीटरों को लगाने का कार्य तेजी से कर रही हैं। स्मार्ट मीटर लगाने व बिजली प्रदान करने के लिए निजी कंपनियों को लाइसेंस दिए जाएंगे। इस तरह बिजली बोर्ड का स्वयं निजीकरण शुरू हो जाएगा। इससे राज्य बिजली बोर्ड में कार्यरत हजारों कर्मचारियों का भविष्य संकट में आ जाएगा। प्री पेड बिजली स्मार्ट मीटर लगने से मोबाइल फोन की तरह पैसे खत्म होने पर स्मार्ट मीटर काम करना बन्द कर देगा व घर में बिजली आपूर्ति बाधित हो जाएगी। स्मार्ट मीटर का रेट बहुत ज़्यादा है जिसकी कीमत ग्राहकों से ही वसूली जाएगी। मीटर की लाइफ भी अधिकतम सात से आठ वर्ष होगी। स्मार्ट मीटर योजना के लागू होने से बिजली क्षेत्र का अपने आप ही निजीकरण हो जाएगा क्योंकि बिजली का वितरण निजी कंपनियों के हाथों में चला जाएगा। निजी बिजली कंपनियां अपने मुनाफे के लिए सरकारी बिजली बोर्डों द्वारा बनाए गए सब स्टेशनों व अन्य ढांचे का इस्तेमाल करेंगी। इस से बिजली बोर्ड के दफ्तरों व फील्ड में तैनात तकनीकी कर्मचारियों की स्वतः ही नौकरी से छुट्टी हो जाएगी। जब बिजली बोर्ड के अस्तित्व ही नहीं रहेगा तो फिर पेंशनभोगियों को पेंशन कहाँ से मिलेगी। स्मार्ट मीटर लगने से उभोक्ताओं का बिजली बिल हज़ारों रुपये आएगा जिस से गरीब जनता व मध्यम वर्ग बिजली से वंचित हो जाएगा। स्मार्ट मीटर लगने से गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों की सब्सिडी बन्द हो जाएगी व जिन 12 लाख उपभोक्ताओं को अभी 125 यूनिट बिजली मुफ्त मिल रही है उन्हे अब मुफ्त बिजली नहीं मिलेगी। कम्पनियां मुनाफा अथवा लाभ कमाने के लिए बहुत ज़्यादा दरों पर बिजली बेचेंगी। कम स्मार्ट मीटर लगने से दिन व रात के समय के बिजली की दरें अलग – अलग हो जाएंगी। बिजली खराब होने पर उसे ठीक करने के दाम जनता से ही वसूले जाएंगे। लघु उद्योगों, दुकानदारों, आटा चक्की व आरा मशीन संचालकों, गरीब व मध्यम वर्ग के लिए स्मार्ट मीटर योजना विनाशकारी साबित होगी।
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