सोलन:हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में जीजा, साला की लड़ाई में पीस रही बहन कमलेश हमारी। महत्वाकांक्षाओं की राजनीति में जनता की सुख सुविधा व विकास तो क्या करना राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं किसी व्यक्ति को कितना गिरा सकती हैं इसका ज्वलंत उदाहरण देहरा विधानसभा क्षेत्र बन गया है। जहां प्रदेश के मुख्यमंत्री को कांग्रेस के मध्य एक भी योग्य कार्यकर्ता नहीं मिला और उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को ही प्रत्याशी बनाकर उतार दिया। क्या कांग्रेस में कार्यकर्ताओं का अकाल हो गया है या सत्ता में बैठे नेता मानसिक रूप से दिवालिया हो गए हैं। तुष्टिकरण भावनात्मक कार्ड खेलने, भड़काने व विभाजन में महारथ प्राप्त कांग्रेस देहरा विधानसभा के इतिहास में एक नया दौर लिख रही है। जहां पर सत्ता के सर्वोत्तम पद पर बैठे हुए कमजोर “ठाकुर” को एक परिवारिक महिला के कंधे का सहारा लेना पड़ रहा है। अपना वर्चस्व व सियासत की विरासत बचाने के लिए, और कमलेश जी के हारते ही मुख्यमंत्री को विदाई देने वालों में कांग्रेस के भीतर होड़ लग जाएगी, अंतर्कलह भीतर के लोकतंत्र में परिवर्तित होकर बाहर आएगी और हिमाचल के इतिहास में सुखविंदर सिंह सुक्खू सबसे कमजोर मुख्यमंत्री में दर्ज किए जाएंगे।
काम, दाम, दंड, भेद, प्रलोभनों से युक्त प्रचार में सब कुछ है बस कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का अभाव है। आत्मीयता लुप्त है, कांग्रेस पूर्णता परिवारवाद युक्त है और प्रदेश की जनता में बेरोजगारी, महिला सशक्तिकरण, स्टार्टअप योजना जैसे अनेक मुद्दे चूल्हे में सुलगती हुई आग की तरह है जो मतदान के दिन ज्वाला में परिवर्तित होंगे, जिसकी तपिष से सिहासन पिघलेगा ।
मुख्यमंत्री अपने परिवार की बेरोजगारी दूर करना चाह रहे हैं। अपने परिवार को स्टार्टअप देना चाह रहे हैं। धर्मपत्नी को सशक्त करना चाह रहे हैं और लोकतंत्र की दुहाई देने वाले कांग्रेसी संविधान भाजपा को दिखा रहे हैं।
गत संपन्न हुए लोकसभा चुनाव की भांति इस बार भी प्रदेश के उपचुनाव में कांग्रेसी, कांग्रेस का साथ छोड़ रहे हैं व स्वयं से पूछ रहे हैं क्या यही वास्तविकता में व्यवस्था परिवर्तन है। मित्रों की सरकार में हमारा भविष्य क्या है और यही लोग भाजपा के पक्ष में मत करेंगे और यह संदेश देंगे।
देश को लोकतंत्र का संदेश देने वाले कांग्रेसियों पहले भीतर का लोकतंत्र तो बचा लो।
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